बिना फल की इच्छा के कोई कर्म क्यों करेगा? शायद इसी सवाल के जवाब में गीता में आगे कहा गया है – न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्। कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: (प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना ही पड़ता है। कोई भी शख्स एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता।)
जमुईचाची ने की भतीजे से लव मैरिज, चुपचाप सामने खड़ा रहा पति, बोली- अब नया वाला ही...
आप गरीब घर में पैदा हुए इसमें आपकी कोई गलती नहीं है पर अगर आप गरीब मर जाते है तो इसमें आप की गलती है
Jb insan dunia m jnm lenta h uska bhagya pehle hi teh ho jata h .karm to vo lousy m krta h…es lyi luck overweigh the karma ..bcoz jo luck m likha hota h krm b usi ke acc hote h
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि ‘अपने विचारों पर नियंत्रण रखो नहीं तो वे तुम्हारा कर्म बन जाएंगे और अपने कर्मो पर नियंत्रण रखो नहीं तो वे तुम्हारा भाग्य बन जाएंगे।’ कर्म ही व्यक्ति के भाग्य और जीवन का निर्माण करते हैं।
इस प्रकार, कर्म हमारे भाग्य का निर्माण करता है और हमारे कार्यों, शब्दों और विचारों का परिणाम होता है। इसलिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम ही अपने भाग्य के निर्माता हैं और हमें अपने कर्मों को ध्यान में रखकर जीवन जीना चाहिए ताकि हम सकारात्मक और संतुलित जीवन जी सकें।
हज़ारों लोग कड़ी मेहनत करते हैं पर कुछ ही लोग सफलता पाते हैं…चाहे वो खेल हो, पढाई हो या फिर एक्टिंग, सिंगिंग, डांसिंग कुछ भी हो.
Karm pradhan vishv kr rakh,jo js kr Hello so ts fl chakha.…..arthat vishv m krm Hello pradhan h…jo jaisa karm krta h vaisa hi fl milta h. krm se hi bhagya k nirman hota h.n ki bhagya se krm ka..
अध्यात्म में भी कर्म के सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति जितने भी कष्ट भोगता है या उसके भाग्य में जो दुर्गति लिखी होती है, वो उसके संचित कर्मों (पिछले जन्मों के बुरे कर्मों ) का परिणाम होती है। इसलिए, अगर आपके खाते में बुरे कर्म हैं, तो ये आवश्यक है कि आप अच्छे कर्मों को कर अपने भाग्य के परिणाम को बदलने की कोशिश करें या उन बुरे कर्मों को नष्ट करें।
यदि विपरीत परिस्थितियों में भाग्य Vs कर्म भी लोग सुखी रहकर जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं तो इसका श्रेय उनके संचित कर्म को जाता है। जब रावण अपने जीवन में अत्यधिक शक्तिशाली एवं सुखी था तब यह उसके संचित कर्म का परिणाम था। मगर उसी रावण के घर कोई दीया जलाने वाला तक नहीं रहा तो यह उसका प्रारब्ध था। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि ‘अपने विचारों पर नियंत्रण रखो, नहीं तो वे तुम्हारा कर्म बन जाएंगे और अपने कर्मो पर नियंत्रण रखो, नहीं तो वे तुम्हारा भाग्य बन जाएंगे।’
“दैव-दैव आलसी पुकारा”- आलसी ही दैव (भाग्य) का सहारा लेता है.
मैं-हां आचार्य जी, तभी तो कहते हैं कि अगर बुरा हो रहा है तो उसको कोई टाल नहीं सकता, क्योंकि वह किस्मत में लिखा भुगत रहा है।
गौतम बुद्ध-बौद्ध धर्म के संस्थापक-जीवन परिचय
सृष्टि में कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए नहीं रह सकता है। वह या तो विचारों के माध्यम से सक्रिय है अथवा क्रियाओं के माध्यम से या फिर कारण बन कर कर्म में योगदान कर रहा है। जीव-जंतु हों या मनुष्य, कोई भी अकर्मण्य नहीं है और न ही कभी रह सकता है। विद्वानों ने मुख्य रूप से तीन प्रकार के कर्म बताए हैं जिनमें एक होता है क्रियमाण कर्म, जिसका फल इसी जीवन में तुरंत प्राप्त हो जाता है। दूसरा संचित कर्म होता है, जिसका फल बाद में मिलता है। तीसरा होता है प्रारब्ध।